Raksha Bandhan Special Story: भारत में उत्तराखंड का यह प्रसिद्ध मंदिर जिसके कपाट केवल रक्षाबंधन के मौके पर ही खुलते है। यहां जानिए इस मंदिर के बारे मे

Raksha Bandhan 2023: जानिए साल में एक दिन खुलने वाले देवभूमि के दिव्य मंदिर की रोचक बातें और अनोखी परंपरा

मुख्य बिंदु

देवभूमि उत्तराखंड का रहस्मयी और अनोखा मंदिर

रक्षाबंधन पर ही खुलते है इस मंदिर के कपाट

भगवान विष्णु को समर्पित है यह मंदिर


Raksha Bandhan 2023, Mandir: अद्भुत संस्कृतियों वाले भारत देश में धार्मिक रीति-रिवाजों का अपना एक विशेष महत्व है। यह देश अपने अंदर एक अनूठी धार्मिक दुनियां बसाए हुए है, जहां हर धर्म के पूजा-पाठ के तरीकों और रीति-रिवाजों का सच्ची निष्ठा के साथ पालन किया जाता है। भारत, कई ऐतिहासिक स्थलों से समृद्ध है, परन्तु यहां के धार्मिक स्थल भी अपनी एक अलग गाथा बयां करते हैं। भारत मंदिरों का देश है, यहां लाखों की संख्या में मंदिर है। इनमें से कई मंदिर विश्वविख्यात हैं जिनसे गहरी मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। इन मंदिरों के खूबसूरत होने के साथ साथ कई रहस्मयी, अलौकिक और चमकत्कारी कहानियां छिपीं हुई हैं। कुछ मंदिर दुर्गम जगहों पर हैं, जहां पहुंचना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन नामुमकिन बिलकुल भी नहीं।

आज के इस आर्टिकल में हम आपको भारत के एक ऐसे ही अनोखे मंदिर के बारे बताने जा रहें है जिसके कपाट सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही खुलते हैं। जी हाँ आपने सही सुना। रक्षाबंधन भाई बहन के प्रेम का एक पावन पर्व है। इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते है। रक्षाबंधन पर बहने भाई के अलावा श्रीकृष्ण को भी राखी बांधती हैं। कहते हैं सबसे पहले देवी लक्ष्मी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपना भाई बनाया था।

रक्षाबंधन की आपने बहुत सारी कहानियां सुनी होंगी लेकिन क्या आप जानते हैं इस चमत्कारी मंदिर के बारे में। आइए आपको बताते हैं कि इस मंदिर से जुड़ी मान्यताएं एवं रोचक तथ्य क्या है और इसके कपाट साल में एक बार ही क्यों खुलते हैं।


कहां मौजूद है ये अनोखा मंदिर

Raksha Bandhan 2023: जानिए साल में एक दिन खुलने वाले देवभूमि के दिव्य मंदिर की रोचक बातें और अनोखी परंपरा

भारत में एक ऐसा अनोखा रहस्मयी मंदिर है जो उत्तराखंड के चामोली जिले में स्थित है। इस मंदिर का नाम है वंशी नारायण/ बंसी नारायण मंदिर जो भगवान विष्णु को समर्पित है। इस मंदिर तक पहुंचने का अनुभव बेहद खास और खूबसूरत है। इसका धार्मिक महत्व तो है, साथ ही इसका टूरिज्म से भी गहरा संबंध है। इस मंदिर तक पहुंचना आसान नहीं है। हिमालयी बुग्यालों में अवस्थित इस मंदिर तक पहुँचने के लिए लोग 12 किलोमीटर खड़ी चढाई चढ़ कर इस चमत्कारी मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं साथ ही यहाँ पहुंचने के लिए तीन विभिन्न पर्वत श्रृंखलाओं से होकर गुजरना पड़ता है। यानि के यहां लोग ट्रेकिंग (Treking) करके आते है।

वंशी नारायण मंदिर पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यह मंदिर हिमालय पर्वत पर स्थित नंदा देवी पर्वत श्रृंखलाओं और जंगलों से घिरा है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए घने ओक के जंगलों के बीच से होकर जाया जाता है। इस पूरे मार्ग में आपको तरह तरह की बनौषधीयां विभिन्न जड़ी बूटियों, भोज पत्र के वृक्षो, सिमरु जूनिफर के अनेक प्रजाति के झाडी नुमा वृक्षों से होकर गुजरना पड़ता है। सुमेरु जिसे यहां की आम भाषा में सिमरू कहा जाता है, में सफ़ेद हल्का बैगनी रंग के खिलते हैं। प्रथम द्रष्टा ये हिमालयी भूभाग के डेढ़ दो फिटी बुरांश की झाड़ियों के फूल दिखाई देते हैं।


सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही खुलते हैं इस मंदिर के कपाट

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देवभूमि उत्तराखंड का एक अकेला ऐसा धाम है जहां भक्त सिर्फ रक्षाबंधन के दिन बंशी नारायण मंदिर में विष्णु जी के दर्शन कर पाते हैं। वंशी नारायण मंदिर की खासियत है कि यह मंदिर पूरे साल बंद रहता है और इसके कपाट सिर्फ रक्षाबंधन के दिन ही खुलते है। भक्त सिर्फ एक ही दिन इस चमत्कारी मंदिर में भगवान के दर्शन कर पूजा-अर्चना करते हैं। यह बेहद अनोखा मंदिर है जहाँ सूर्योदय के साथ मंदिर के कपाट खुलते हैं और सूर्यास्त के बाद इसे सालभर के लिए बंद कर दिया जाता है। 


वंशी नारायण मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

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वंशी नारायण मंदिर की महीमा निराली है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु अपने वामन अवतार से मुक्त होने के बाद सबसे पहले इसी स्थान पर प्रकट हुए थे। पाताल लोक से धरती पर आने के पीछे भी एक ओर पौराणिक कथा है। ऐसी मान्यता है कि राजा बलि के अहंकार को नष्ट करने के लिए भगवान विष्णु ने वामन का रूप धारण किया था और बलि के अहंकार को नष्ट करके पाताल लोक भेज दिया। जब बलि का अहंकार नष्ट हुआ तब उन्होंने नारायण से प्रार्थना की कि आप मेरे सामने ही रहे। इसके बाद विष्णु जी बलि का द्वारपाल बन गए। जब बहुत दिनों तक विष्णु जी मां लक्ष्मी के पास नहीं पहुंचे तो मां लक्ष्मी भी पाताल लोक पहुंच गई और बलि की कलाई पर राखी बांधी और प्रार्थना की कि वह भगवान विष्णु को पाताल लोक से जाने दें। इसके बाद राजा बलि ने बहन लक्ष्मी की बात मानकर विष्णु जी को वचन से मुक्त कर दिया। तब से इस जगह को वंशी नारायण के रूप में पूजा जाने लगा।

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वंशी नारायण मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसे छठी सदी में बनाया गया था। एक अन्य लोक मान्यता के अनुसार इस स्थान पर देव ऋषि नारद ने प्रभु नारायण की सबसे पहले पूजा-अर्चना की थी। माना जाता है कि नारद जी साल के 364 दिन विष्णु जी की पूजा करते हैं और एक दिन के लिए चले जाते हैं, जिससे अन्य लोग पूजा कर सकें। इसी वजह से यहां पर लोगों को सिर्फ एक दिन ही पूजा करने का अधिकार मिला हुआ है। स्थानीय लोग श्रावन पूर्णिमा पर भगवान नारायण का श्रृंगार भी करते हैं। रीती रिवाजों के अनुसार, यहां की महिलाएं और लड़कियां भाईयों को राखी बांधने से पहले भगवान की पूजा करती हैं। ऐसी मान्यता है कि रक्षाबंधन के दिन वंशी नारायण मंदिर में जो भी बहनें अपने भाई को राखी बांधती हैं उन्हें सुख, संपत्ति और सफलता का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही उनके भाईयों पर कभी कोई संकट नहीं आता है।


मंदिर से जुड़ी रोचक बातें

Raksha Bandhan 2023: जानिए साल में एक दिन खुलने वाले देवभूमि के दिव्य मंदिर की रोचक बातें और अनोखी परंपरा

 मंदिर के पास एक भालू गुफा मौजूद हैं, जहां भक्त प्रसाद बनाते हैं। रक्षाबंधन के दिन यहां बड़ा आयोजन होता है। कहते हैं कि इस दिन हर घर से यहां मक्खन आता है और इसे प्रसाद में मिलाकर भगवान को भोग लगाया जाता है।

बंसी नारायण मंदिर में भगवान विष्णु और भगवान शिव के अलावा भगवान गणेश और वन देवी की मूर्तियां भी मौजूद हैं। 

► बंसी नारायण मंदिर में भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा मौजूद है और इस मंदिर की अंदर से ऊंचाई महत 10 फुट है। इसके पुजारी राजपूत हैं, जो हर साल रक्षाबंधन पर विशेष पूजा का आयोजन करते हैं।

► आप यहां पहुंचना चाहते हैं, तो पहले उत्तराखंड के चमोली जिले में पहुंचे और फिर यहांउर्गम घाटीपहुंच जाए। इसके बाद आपको करीब 12 किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा और फिर रास्ते में मंदिर नजर आएगा।


बंसी नारायण मंदिर कैसे पहुंचे?

Raksha Bandhan 2023: जानिए साल में एक दिन खुलने वाले देवभूमि के दिव्य मंदिर की रोचक बातें और अनोखी परंपरा

पहला मार्ग

🔷 उत्तराखंड के चमोली जिले में उर्गम घाटी में स्थित बंसी नारायण मंदिर तक केवल पैदल ही पहुंचा जा सकता है।

🔷 सबसे पहले आपको जोशीमठ जाना होगा जो देहरादून से लगभग 293 किमी दूर है।

🔷 उसके बाद जोशीमठ से हेलंग की तरफ जाना होगा जो 22 किमी दूर है। उसके बाद देवग्राम की तरफ हेलंग से 15 किमी दूर जाना होता है। 

🔷 बंसी नारायण मंदिर का ट्रेक लगभग 12 से 15 किमी लंबा है और यह देवग्राम से शुरू होता है।


दूसरा मार्ग

Banshi Narayan Mandir Trek

🔶 अगर आप ऋषिकेश के रास्ते से रहें है तो जोशीमठ से करीब 255 किमी की दूरी पर है।

🔶 जोशीमठ से 10 किमी की दूरी पर मौजूद हेलंग घाटी से उर्गम घाटी तक के लिए जीप मिलती है।

🔶 उसके बाद उर्गम घाटी से पैदल ट्रेकिंग कर वंशीनारायण मंदिर पहुंचा जा सकता है। रास्ते में आपको अलकनंदा और कल्पगंगा नदियों का बेहद सुन्दर संगम भी दिखाई देगा।

🔶 वंशी नारायण मंदिर का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट देहरादून है, जो जोशीमठ से 20 किमी की दूरी पर है। ऋषिकेश यहां से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है।

दोस्तों इस रक्षाबंधन पर आप भी देवभूमि उत्तराखंड के प्रसिद्ध बंशी नारायण मंदिर के दर्शन जरूर करें। भगवान विष्णु आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें। इसके साथ ही मैं उम्मीद करती हूँ कि आपको हमारे द्वारा दी गयी यह जानकारी जरूर पसंद आई होगी। हमें कमेंट करके जरूर बताये। साथ ही इसे सोशल मीडिया जैसे Facebook Instagram पर भी शेयर जरूर करें। बाकी अन्य आर्टिकलस को पढ़ने के लिए हमेशा ऐसे ही बने रहिये आपकी अपनी वेबसाइट www.99advice.com के साथ।

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। www.99advice.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।)




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Sumegha Bhatnagar

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