रक्षाबंधन 2025: जानिए क्यों वर्जित है भद्रा काल में राखी बांधना?
रक्षाबन्धन हिंदुओं का प्रमुख त्यौहार है जो श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह भाई-बहन को स्नेह की डोर से बांधने वाला त्यौहार है। यह त्यौहार भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है।
क्या आप जानते हैं कि वास्तव में कहां से शुरू हुआ रक्षाबंधन का त्यौहार??
प्रत्येक वर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का पावन पर्व मनाया जाता
है। इस साल रक्षा बंधन के दिन विशेष संयोग बन रहा है। इस वर्ष राखी का त्यौहार 09 अगस्त को मनाया
जाएगा। रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी
बांध कर उनकी कुशलता की कामना करती हैं।
प्राचीन काल से चले आ रहे त्यौहारों में से एक बहुत ही आदर्श प्रेम प्रतीक सदभावनाओ से भरा हुआ त्यौहार रक्षा बन्धन माना गया है। कच्चे धागे का बंधन समाज के लोगों में एक आदर्श प्रस्तुत करता है। रक्षा बन्धन का यह त्यौहार प्राचीन काल से पूरे भारतवर्ष और विदेशों में जो भारतीय निवास करते हैं, वह भी इसे बहुत धूमधाम से मनाते हैं। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का बन्धन है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। पहले रक्षाबन्धन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था।
इतिहासकारों की माने तो रक्षाबंधन का इतिहास काफी पुराना है, जो सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ा हुआ है। असल में रक्षाबंधन की परंपरा उन बहनों ने डाली थी जो सगी नहीं थीं, भले ही उन बहनों ने अपने संरक्षण के लिए ही इस पर्व की शुरुआत क्यों न की हो, लेकिन उसकी बदौलत आज भी इस त्यौहार की मान्यता बरकरार है।
रक्षाबंधन ही एक ऐसा त्यौहार है जिसका इतिहास करीब 6 हजार साल पुराना है। रक्षाबंधन की शुरुआत का सबसे पहला साक्ष्य रानी कर्णावती और सम्राट हुमायूं का है। मध्यकालीन युग में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था, तब चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। तब हुमायू ने उनकी रक्षा कर उन्हें बहन का दर्जा दिया था।
रक्षाबंधन का दूसरा इतिहास भगवान कृष्ण और द्रोपदी से जुड़ा हुआ है। जब कृष्ण भगवान ने राजा शिशुपाल को मारा तो युद्ध के दौरान कृष्ण के बाएं हाथ की उंगली से खून बह रहा था, इसे देखकर द्रोपदी बेहद दुखी हुईं और उन्होंने अपनी साड़ी का टुकड़ा चीरकर कृष्ण की उंगली में बांध दिया। जिससे उनका खून बहना बंद हो गया। तभी से कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन मान लिया। द्रोपदी को बहन मानने की वजह से ही भगवान कृष्ण ने अपनी बहन की रक्षा उस समय की जब उनका साथ किसी ने नहीं दिया था। जब पांडव द्रोपदी को जुए में हार गए थे और भरी सभा में द्रोपदी का चीरहरण हो रहा था, तब कृष्ण ने ही द्रोपदी की लाज बचाई थी।
रक्षाबंधन पर्व मनाने की विधि:
रक्षाबंधन के दिन घरों में साफ सफाई करने के पश्चात दरवाज़ों पर आम तथा केले के पत्तों के बन्दनवार लगाते हैं। प्रातः शीघ्र उठकर बहनें स्नान करके अपने घर में दीवारों पर सोन रखती हैं और फिर सेवइयों, चावल की खीर और मिठाई से इनकी पूजा करती है। सोनों (श्रवण) के ऊपर सेवइयों, खीर या मिठाई की सहायता से राखी के धागे चिपकाए जाते हैं। अगरबत्ती व धूप जलायी जाती है। बहनें तरह-तरह के स्वादिष्ट भोजन बनाती हैं। पूजा करने के पश्चात भाइयों को तिलक लगाती हैं तथा उसकी दाहिने कलाई पर राखी बाँधती हैं। इसके पश्चात् भाइयों को कुछ मीठा खिलाया जाता है। भाई अपनी बहन को भेंट देता है। साथ ही बहुत से परिवारों में यदि भाई विवाहित है तब उसकी पत्नी एवं बच्चों को भी रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा होती है। हमारे देश में कई जगह वृक्ष, भगवान, ब्राह्मणों और गुरुओं को भी राखी बांधने की परंपरा है।
कब बांधे रक्षाबंधन:
रक्षाबंधन शास्त्रोक्त विधि से बांधना ही उचित होता है, क्योंकि भद्रा के आने से शुभ और अशुभ का विचार करना होता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भद्रा काल में राखी बांधना शुभ नहीं माना जाता है। भद्रा में रक्षासूत्र बांधने से परेशानी हो सकती है। रामायण में ऐसा जिक्र है कि सूर्पनखा ने अपने भाई रावण को भद्रा में राखी बाँधी थी, जिसके कारण रावण का विनाश हो गया, इसका तात्पर्य यह है कि रावण का अहित हुआ इस कारण भद्रा काल में लोग राखी बांधने को मना करते हैं। भद्रा काल के दौरान शुभ कार्य को करने से इसलिए मना किया जाता है क्योंकि यह एक अशुभ प्रभाव की तरह होता है। इसलिए इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। वैसे कुछ पुराने पुराणों में यह भी वर्णन है कि भद्रा के वक्त भगवान शिव तांडव करते हैं और उस वक़्त वो काफी क्रोध में होते हैं, ऐसे में अगर उस समय कोई भी शुभ काम किया जाये तो शिव जी के क्रोध का सामना करना पड़ता है और अच्छा काम भी बिगड़ सकता है इसलिए भद्रा के समय कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता।ज्योतिषियों एवं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि पर भद्राकाल और राहुकाल का विशेष ध्यान रखा जाता है। भद्राकाल और राहुकाल में राखी नहीं बांधी जाती है क्योंकि इन काल में शुभ कार्य वर्जित है। अतः इस समय बहनें राखी ना बांधे। इस साल पूर्णिमा तिथि 08 अगस्त को दोपहर 02:12 मिनट से शुरु होगी जो 09 अगस्त 2025
को दोपहर 01:24 तक चलेगी। लेकिन पूर्णिमा के साथ ही भद्राकाल भी शुरु हो जाएगी और पूर्णिमा में ही समाप्त हो जाएगी। भद्राकाल में राखी बांधना शुभ नहीं माना गया है। भद्राकाल दोपहर को 02:12 से लग जाएगा। ऐसे में भद्राकाल समाप्त होने पर ही राखी बांधी जाएगी। सुविधानुसार श्रेष्ठ मुहूर्त में बहनें भाइयों की कलाइयों पर राखी बांध सकती हैं।
रक्षाबंधन
मुहूर्त 2025
रक्षाबंधन श्रावण पूर्णिमा तिथि: 08 अगस्त 2025
पूर्णिमा तिथि आरंभ: 08 अगस्त 2025 को दोपहर 02 बजकर 12 मिनट से।
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 09 अगस्त 2025 को दोपहर 01 बजकर 24 मिनट तक।
राखी बांधने का समय: 09 अगस्त 2025 की सुबह 05 बजकर47 मिनट से शुरू होकर दोपहर 01 बजकर 24 तक रहेगा।
कुल मिलाकर शुभ मुहूर्त 07 घंटे 36 मिनट का होगा।
रक्षाबंधन भद्राकाल का प्रारंभ का समय: 08 अगस्त 2025 को सुबह 02 बजकर 12 मिनट से
रक्षाबंधन भद्राकाल की समाप्ति: 08 अगस्त 2025 को मध्य रात्रि 01 बजकर 52 मिनट तक।
रक्षाबंधन स्नेह का वह अमूल्य बंधन है जिसका बदला धन तो क्या सर्वस्व देकर भी नहीं चुकाया जा सकता। वर्तमान में यह त्यौहार बहन-भाई के प्यार का पर्याय बन चुका है, कहा जा सकता है कि यह भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और गहरा करने वाला पर्व है। एक ओर जहां भाई-बहन के प्रति अपने दायित्व निभाने का वचन बहन को देता है, तो दूसरी ओर बहन भी भाई की लंबी उम्र के लिये उपवास रखती है। इस दिन भाई की कलाई पर जो राखी बहन बांधती है वह सिर्फ रेशम की डोर या धागा मात्र नहीं होती बल्कि वह बहन-भाई के अटूट और पवित्र प्रेम का बंधन और रक्षा पोटली जैसी शक्ति भी उस साधारण से नजर आने वाले धागे में निहित होती है। आज के आधुनिक तकनीकी युग का प्रभाव राखी जैसे त्यौहार पर भी पड़ा है। बहुत सारे भारतीय आजकल विदेश में रहते हैं एवं उनके परिवार वाले (भाई एवं बहन) अभी भी भारत या अन्य देशों में हैं। इण्टरनेट के आने के बाद बहुत सी ऐसी ई-कॉमर्स साइट खुल गयी हैं जो ऑनलाइन आर्डर लेकर राखी दिये गये पते पर पहुँचाने की सुविधा देती हैँ। अतः इस सुविधा की वजह से दूर बैठे भाई - बहिन को दूरी का आभास नहीं होता।
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