चित्रगुप्त जी की आरती

चित्रगुप्त जी की आरती



हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान चित्रगुप्त जी की नियमित आधार पर आरती करने से भगवान खुश हो कर अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं।


ओम् जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे।

भक्तजनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे।।

विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी।
भक्तों के प्रतिपालक, त्रिभुवन यश छायी।। ओम् जय।।

रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत, पीताम्बर राजै।
मातु इरावती, दक्षिणा, वाम अंग साजै।। ओम् जय।।

कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक, प्रभु अंतर्यामी।
सृष्टि सम्हारन, जन दु: हारन, प्रकट भये स्वामी।। ओम् जय..।।

कलम, दवात, शंख, पत्रिका, कर में अति सोहै।
वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मन मोहै।। ओम् जय।।

विश्व न्याय का कार्य सम्भाला, ब्रम्हा हर्षाये।
कोटि कोटि देवता तुम्हारे, चरणन में धाये।। ओम् जय।।

नृप सुदास अरू भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा।
वेग, विलम्ब कीन्हौं, इच्छित फल दीन्हा।। ओम् जय।।

दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता।
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता।। ओम् जय।।

बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिन और दूजा, आस करूँ जिसकी।। ओम् जय।।

जो जन चित्रगुप्त जी की आरती, प्रेम सहित गावैं।
चौरासी से निश्चित छूटैं, इच्छित फल पावैं।। ओम् जय।।

न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी, पाप पुण्य लिखते।
नानकशरण तिहारे, आस दूजी करते।। ओम् जय।।



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    Sumegha Bhatnagar

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