इस वर्ष नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली 11 नवंबर 2023 मनायी जायेगी। यह दिन हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार अपना विशेष महत्व रखता है।




छोटी दिवाली धनतेरस के अगले दिन और मुख्य दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाती है।इसे नर्क चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। नरक चतुर्दशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाने वाला त्यौहार है। जो हिन्दुओ के सबसे बड़े और पांच दिन तक चलने वाले दिवाली के त्यौहार का दूसरा दिन होता है। इस दिन दिवाली को छोटे स्तर पर मनाया जाता है, जब कुछ दीपक और पटाखे जलाये जाते हैं।

छोटी दिवाली की सुबह सभी महिलाये अपने घरो की साफ़-सफाई करके मुख्य द्वार और घर के आँगन में खूबसूरत रंगोली बनाती है। चावल के आटे के पेस्ट और सिंदूर के मिश्रण से पुरे घर में माँ के छोटे-छोटे पैर बनाये जाते है। ये दिवाली पर किया जाने वाला सबसे विशेष कार्य होता है।

छोटी दिवाली पर श्री कृष्ण की जीत का जश्न मनाया जाता है। पौराणिक कहानियों के अनुसार श्री कृष्ण नरकासुर का वध कर आज ही के दिन लौटे थे। उनके लौटने पर उन्हें सुगंधित तेल और उबटन से स्नान कराया गया था। इसी जीत का जश्न कार्तिक मास के 14वें दिन 'नरक चतुर्दशी' या 'छोटी दिवाली' के रूप में मनाया जाता है। यह दिन काली चौदस, छोटी दिवाली, नरका चौदस, यम चतुदर्शी और रुप चौदस के नाम से भी जाना जाता है |

इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दु्र्दान्त असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष में दीयों की बारत सजायी जाती है।



पौराणिक कथा:


विष्णु पुराण में नरकासुर वध की कथा का उल्लेख मिलता है।विष्णु ने वराह अवतार धारण कर भूमि देवी को सागर से निकाला था।द्वापर युग में भूमि देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया। वह एक अत्यंत क्रूर असुर था, इस कारण ही उसका नाम नरकासुर रखा गया।

नरकासुर प्रागज्योतिषपुर का राजा बना। उसने देवी-देवताओं और मनुष्यों सभी को बहुत तंग कर रखा था। यही नहीं उसने गंधर्वों और देवों की 16000 अप्सराओं को कैद करके रखा हुआ था।एक बार नरकासुर अदिति के कर्णाभूषण उठाकर भाग गया था। सभी देवतागण दौड़े-दौड़े भगवान इन्द्र के पास रक्षा करने की गुहार लगाने पहुंचे। इंद्र की प्रार्थना पर भगवान कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर की नगरी पर अपनी पत्नी सत्यभामा और साथी सैनिकों के साथ भयंकर आक्रमण कर दिया।

इस युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने मुर, हयग्रीव और पंचजन आदि राक्षसों का संहार कर दिया।इसके बाद कृष्ण ने थकान की वजह से क्षण भर के लिए अपनी आँखें बन्द कर ली। तभी नरकासुर ने हाथी का रूप धारण कर लिया और कृष्ण पर हमला करने गया।सत्यभामा ने उस असुर से लोहा लिया और नरकासुर का वध किया।इसके बाद सोलह हजार एक सौ कन्याओं को राक्षसों के चंगुल से छुड़ाया गया। इसलिए भी यह त्योहार मनाया जाता है। तभी से इसका नाम नरका चौदस पड़ा।

शाम के वक्त, तेल के दीपक अपने घर की अलग-अलग दिशाओ में जलाएं जाते हैं। जिनमे से एक मुख्य द्वार पर, दूसरा तुलसी के पौधे के पास, तीसरा नीम के पौधे के पास, चौथा पानी के स्त्रोत्र या पानी की टंकी के निकट और पांचवा मवेशियों के कमरे या तबेले में जलाया जाता है। अपने कार्यस्थल के मुख्य द्वार पर भी दीपक जलाएं। ऐसा करने से एक तो पाप नष्ट होते हैं और दूसरा माता लक्ष्मी का निवास होता है। इस दिन सभी राज्य अपनी-अपनी रीती और परंपराओं के अनुसार इस त्यौहार को मनाते है।























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    Sumegha Bhatnagar

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